हुमायूं के मकबरे में हादसा: दिल्ली में बड़ा हादसा, दीवार गिरने से 6 की मौत | Delhi Humayun Tomb Accident

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दिल्ली में हुमायूं के मकबरे का एक हिस्सा गिरा, मलबे में दबने से 6 की मौत | Delhi Humayun Tomb Accident

Delhi Humayun Tomb Accident: दिल्ली से एक बुरी खबर सामने आ रही है। राष्ट्रीय राजधानी के निजामुद्दीन इलाके में स्थित ऐतिहासिकहुमायूं के मकबरेमें एक बड़ा हादसा हो गया है। परिसर के अंदर बने एक कमरे की दीवार का एक हिस्सा अचानक गिर गया, जिससे वहां मौजूद कई लोग मलबे के नीचे दब गए। इस दुखद हादसे में 6 लोगों की मौत हो गई है, जबकि कुछ अन्य लोग घायल हुए हैं। घटना की जानकारी मिलते ही दिल्ली फायर सर्विस की गाड़ियां तुरंत मौके पर पहुंचीं और राहत एवं बचाव कार्य शुरू कर दिया गया है। फिलहाल, मलबे में फंसे हुए लोगों को बाहर निकालने के प्रयास जारी हैं। यह 16वीं सदी का भव्य स्मारक न केवल इतिहास प्रेमियों के लिए बल्कि दिल्ली आने वाले पर्यटकों के लिए भी एक प्रमुख आकर्षण है।

यह दुर्घटना शाम करीब 4:30 बजे हुई, जिसकी सूचना तुरंत दिल्ली फायर सर्विस को दी गई। मौके पर पहुंचे बचाव दल ने तेजी से काम शुरू कर दिया है। यह ऐतिहासिकमकबराअपनी स्थापत्य कला के लिए दुनियाभर में प्रसिद्ध है, लेकिन इस दुखद घटना ने इसके जीर्ण-शीर्ण हालत पर सवाल उठा दिए हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) और अन्य संबंधित अधिकारियों को इस तरह के ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा और रखरखाव पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इस तरह की दुर्घटनाएं न केवल जान-माल का नुकसान करती हैं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी खतरे में डालती हैं।

हुमायूं ने रखी थी पुराने किले की नींव

दिल्ली में स्थितहुमायूं का मकबराजिसे ‘मकबरा-ए-हुमायूं’ भी कहा जाता है, मुगल सम्राट हुमायूं की स्मृति में बनवाया गया एक शानदार स्मारक है। इसे हुमायूं की पहली पत्नी बेगा बेगम, जिन्हें हाजी बेगम के नाम से भी जाना जाता है, ने 1569-70 में बनवाया था। इस मकबरे का डिज़ाइन फारसी वास्तुकार मिर्क मिर्ज़ा गियास और उनके बेटे सय्यद मुहम्मद ने तैयार किया था। यह भारतीय उपमहाद्वीप में बना अपनी तरह का पहला ‘बगीचा-मकबरा’ है। यह मकबरा दिल्ली के निज़ामुद्दीन पूर्व इलाके में स्थित है, और इसके पास ही पुराना किला है, जिसे दीना-पनाह के नाम से भी जाना जाता है। इस किले की नींव स्वयं हुमायूं ने 1533 में रखी थी। इस मकबरे में पहली बार लाल बलुआ पत्थर का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल किया गया था, जो इसे और भी खास बनाता है। 1993 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल का दर्जा दिया, जिसके बाद इसके संरक्षण और जीर्णोद्धार का काम किया गया।

मुगल वास्तुकला का शानदार नमूना है यह मकबरा

मुख्य मकबरे के अलावा, इस परिसर में कई छोटे-छोटे स्मारक भी मौजूद हैं। विशेष रूप से, पश्चिमी प्रवेश द्वार के पास ईसा खान नियाज़ी का मकबरा परिसर है। ईसा खान, सूरी वंश के शासक शेरशाह सूरी के दरबार में एक प्रमुख अफगान सरदार थे, जिन्होंने 1547 में मुगलों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। यह मकबरा न केवल ऐतिहासिक महत्व रखता है, बल्कि यहमुगल वास्तुकलाका एक अद्भुत उदाहरण भी है, जो इतिहास और कला प्रेमियों को आज भी अपनी ओर आकर्षित करता है। इस मकबरे का निर्माण मुगल शासकों की कला और स्थापत्य के प्रति गहरी रुचि को दर्शाता है। इस दुखद घटना के बाद, ऐसे ऐतिहासिक स्थलों की सुरक्षा और रखरखाव को लेकर सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में इस तरह की दुर्घटनाओं से बचा जा सके।

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