‘कन्नप्पा’ (Kannappa) में पकड़ी गई अक्षय कुमार ( Akshay Kumar ) की चालाकी, फैंस भड़क उठे
‘कन्नप्पा’ में अक्षय कुमार की चालाकी उजागर? फैंस बोले – एक्टिंग गई, बस पैसा चाहिए!
जब शिव बने अक्षय कुमार ( Akshay Kumar ), लेकिन आंखों ने खोल दी पोल
इन दिनों सोशल मीडिया पर एक वीडियो ने ज़बरदस्त हलचल मचा दी है। वीडियो ‘कन्नप्पा’ फिल्म का है, जिसमें अक्षय कुमार भगवान शिव की भूमिका निभा रहे हैं। सीन में उनके साथ मां पार्वती के किरदार में काजल अग्रवाल नजर आती हैं। सीन बेहद गंभीर है, लेकिन दर्शकों की नजर अक्षय की आंखों की हरकत पर पड़ी – जैसे वो कहीं से डायलॉग पढ़ रहे हों।
लोगों ने दावा किया कि अक्षय किसी टेलीप्रॉम्प्टर से अपने संवाद पढ़ रहे थे। कुछ यूजर्स ने ज़ूम करके वीडियो में सफेद स्क्रीन जैसी चीज़ देखने का भी दावा किया। इसके बाद तो अक्षय को ‘टेलीप्रॉम्प्टर कुमार’ का टैग मिल गया, और ट्रोल्स की बाढ़ आ गई।
“अरे भाई! ये वही अक्षय हैं जो 40 दिन में फिल्म खत्म करते हैं। अब समझ आया कैसे करते हैं!” – एक यूजर का तंज।
जब Akshay Kumar ने KISS के लिए पार की थी हदें
टेलीप्रॉम्प्टर की मदद या एक्टिंग से समझौता?
यह पहला मौका नहीं है जब अक्षय पर ऐसे आरोप लगे हैं। 2024 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘सरफ़िरा’ के समय भी अक्षय को टेलीप्रॉम्प्टर से डायलॉग पढ़ते देखा गया था।
यह सवाल उठता है कि क्या एक अनुभवी अभिनेता को संवाद याद नहीं रहने पर टेलीप्रॉम्प्टर का सहारा लेना चाहिए? क्या ये दर्शकों के साथ धोखा नहीं है, खासकर तब, जब एक्टर 100 करोड़ जैसी भारी-भरकम फीस वसूलते हैं?
1 मिनट = 1 करोड़!
सूत्रों के मुताबिक, ‘कन्नप्पा’ फिल्म में अक्षय कुमार ने भगवान शिव के 10 मिनट के कैमियो रोल के लिए करीब₹10 करोड़लिए हैं। यानी, हर मिनट के लिए उन्हें एक करोड़ रुपये मिले।
ऐसे में जब लोग उन्हें स्क्रीन पर टेलीप्रॉम्प्टर से डायलॉग पढ़ते देखते हैं, तो सवाल उठना लाज़मी है। दर्शक आज सिर्फ चेहरे नहीं देखते, उन्हें एक्टिंग में ईमानदारी भी चाहिए।

फैंस के कमेंट्स: गुस्से और मायूसी का मेल
सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई:
“टेलीप्रॉम्प्टर कुमार – अब कोई एक्टिंग नहीं, बस स्क्रीन से पढ़ते हैं।”
“ये वही अक्षय हैं जो एक वक्त पर कॉमेडी और एक्शन के किंग थे। अब जैसे सब रटकर बोल देते हैं।”
“100 करोड़ फीस लेने वाले को कम से कम डायलॉग तो याद होने चाहिए। मेकर्स क्यों मान जाते हैं?”
इन प्रतिक्रियाओं से साफ है कि लोग अब सिर्फ स्टार पावर से संतुष्ट नहीं हैं। उन्हें परफॉर्मेंस चाहिए, जुनून चाहिए।

क्या डायरेक्टर्स भी दोषी हैं?
एक अहम सवाल ये भी है –क्या डायरेक्टर्स और प्रोड्यूसर्स की जिम्मेदारी नहीं बनती कि वो ऐसे समझौतों को रोके?
जब एक्टर को पता हो कि उसकी आंखें कैमरे में कैद होंगी, तो क्या ये जरूरी नहीं कि वो संवाद दिल से बोले, न कि स्क्रीन से पढ़े?
आज जहां हर फ्रेम में करोड़ों का खर्च आता है, वहां दर्शकों का भरोसा भी उतना ही जरूरी है। एक अभिनेता सिर्फ पैसा लेकर रोल निभा दे, तो उसका असर फिल्म की साख पर भी पड़ता है।
2025 में दर्शक और भी जागरूक हैं
आज का दर्शक इंटरनेट की ताकत से लैस है। उन्हें स्क्रीन के पीछे की सच्चाई जल्दी पता चल जाती है। अगर उन्हें लगे कि कोई कलाकार मेहनत नहीं कर रहा, तो वे सोशल मीडिया पर ट्रेंड से लेकर बायकॉट तक ले आते हैं।
अब वो दौर नहीं रहा जब स्टारडम ही सब कुछ होता था। अब दर्शकों को चाहिए ‘कंटेंट और कनेक्ट’ – और वो तभी होता है जब परफॉर्मेंस दिल से हो।
टेलीप्रॉम्प्टर vs टैलेंट – एक गहरा सवाल
टेलीप्रॉम्प्टर कोई नया कॉन्सेप्ट नहीं है, पर फिल्मों में इसका इस्तेमाल सामान्य नहीं माना जाता। यह तकनीक स्पीच या लाइव इवेंट्स में चलती है, लेकिन एक्टिंग एक अलग ही कला है, जहां संवादों के साथ भावनाएं भी ज़रूरी होती हैं।
तो अब सवाल उठता है:
क्या भारी फीस लेने वाले स्टार्स को सिर्फ चेहरा दिखाने की जिम्मेदारी है?
क्या एक्टिंग का मतलब अब बस टेक्नोलॉजी से पढ़ना रह गया है?
क्या दर्शकों को यह स्वीकार करना चाहिए?
Talkaaj की राय: एक्टिंग में टेक्नोलॉजी नहीं, दिल होना चाहिए
हर बड़े अभिनेता के पास एक जिम्मेदारी होती है—दर्शकों की उम्मीदों को पूरा करने की। सिर्फ नाम से टिकट बिक सकते हैं, लेकिन सम्मान और भरोसा परफॉर्मेंस से मिलता है।
अगर अक्षय कुमार जैसे बड़े नाम भी मेहनत की जगह शॉर्टकट लेने लगें, तो ये सिनेमा की आत्मा पर सवाल है।
आपकी राय क्या है?
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क्या अक्षय का टेलीप्रॉम्प्टर से पढ़ना वाकई गलत था?
या फिर ये आज के दौर की ज़रूरत बन चुकी है?
Talkaaj की सलाह:
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